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सन्तोषम परम सुखम / कुमार मुकुल

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सन्तोष बड़ा सुख है

ज्ञानी विचार से सन्तुष्ट होता है

बुद्धिमान तर्क से

मूरख अपनी आस्थाओं से सन्तुष्ट होता है

और जड़ अपनी जड़ताओं के टूटने से


तमाम डरों के प्रति अपनी जिज्ञासाओं से

सन्तुष्ट होते हैं बच्चे

बच्चों के डरों को जानकर

ख़ुश होते हैं बूढ़े

कि वे भी उन्हीं के समान हैं


लगाम कसे जाने पर

बिगड़ैल घोड़ों की तरह भागता

युवा ख़ुश होता है

तमाम पाबिन्दयों को बिसारकर

सन्तुष्ट होती है युवती


युवा समझे जाने पर किशोर ख़ुश होता है

नवोदित वक्षों में खदबदाती

गौरैयों को छेड़कर

खुश होती है किशोरी

विरह में प्रेमी ख़ुश होते हैं

मिलन में कामी

बन्धने पर तन ख़ुश होता है

स्वतन्त्र छोड़ देने पर मन


हवाई दुर्घटनाओं की ख़बर सुनकर

क्रान्तिकारी ख़ुश होता है

कि चलो दलालों की एक खेप कम हुई

ख़बरों को पाकर

ख़बरनवीस सन्तुष्ट होता है

उन्हें दबाकर संपादक


पर राजनीतिज्ञ और हत्यारे

कभी ख़ुश नहीं होते

अपने हर क़दम के बाद

ख़ुद को वे

और घिरा पाते हैं।