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सपना रोॅ ताजमहल / बिंदु कुमारी
Kavita Kosh से
सपना के ताजमहल, सपना मेॅ मिली गेलै।
देखलेॅ जे छेलियै हृदय सेॅ वोहोॅ टूटी गेलै।।
आँखी मेॅ घुरै रहै, बीहा के सीन।
भुटना तेॅ लेलकै सब्भेॅ सपना छीन।।
आँखी मेॅ घुरै रहै पर्दा नसीन।
होय गेलै वातावरण एकदम्हैं गमगीन।।
आँखी मेॅ हेलै रहै, शिवजी के मूर्ति।
टूटी केॅ बिखरी गेलै मूर्ति के सुर्ति।।
मतवाला शिव बसहा सबारी।
माय देखी कानै रहि-रहि राती।।
हम्मेॅ की कानवोॅ, मैय्येॅ कानै बेजार।
है कि करलोॅ ‘पिटुआ’ के बाप।।
सपना सब्भेॅ रहलोॅ अधुरा।
की पीलेॅ छेलोॅ भांग धथुरा,
मोॅन करै आँख दौ, हम्मेॅ तोरोॅ फोड़ी।
देखै छोॅ की हमरा चश्मा तरोॅ सेॅ कोढ़ी-करेजी।।