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सपने-एक / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
कहां से आए
वे सपने
जो मैंने
अब तक
देखे हैं
मगर
जी नहीं सका?
और
कहां रहते है
वे सपने
जो मैंने
अब तक
देखे नहीं
मगर
जिन्दा हूं
केवल उन्हीं के लिए
सपनो के
एक मौन पात्र सा।