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सपने / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
(देवदास के बहाने उसके रचनाकार शरदचन्द्र चट्टोपाध्याय को याद करते हुए)
मेरे पास कुछ नहीं था क्योंकि मेरे पास
केवल सपने थे
उनके पास कुछ नहीं था
क्योंकि उनके पास सब कुछ था
बस सपने नहीं थे
वे मेरे सपने खरीदना चाहते थे
मैं उन्हें दे आया मुफ़्त
जो मेरी कुल संपदा थी
अब उनकी बारी थी
उन्हें सब कुछ लुटाना पड़ सकता था मेरे सपनों पर
और इतना ही नहीं
होना पड़ सकता है उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी कर्ज़दार
वे अगर सचमुच डूबना चाहते हैं मेरे सपनों की थाह लेने ।