भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने ज़िन्दा हैं अभी / प्रेमनन्दन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मर नहीं गए हैं सब सपने
कुछ सपने ज़िन्दा हैं अभी भी !
एक पेड़ ने
देखे थे जो सपने
हर आँगन में हरियाली फैलाने के
वे उसके कट जाने के बाद भी
ज़िन्दा हैं अभी
उसकी कटी हुई जड़ों में।

एक फूल ने
देखे थे जो सपने
हर माथे पर ख़ुशबू लेपने के
वे उसके सूखकर बिखर जाने के बाद भी
ज़िन्दा हैं अभी
उसकी सूखी पँखुड़ियों में।

एक तितली ने
देखे थे जो सपने
सभी आँखों में रंग भरने के
वे उसके मर जाने के बाद भी
ज़िन्दा हैं अभी
उसके टूटे हुए पंखों में।

एक कवि ने
देखे थे जो सपने
सामाजिक समरसता के;
जात-पात , छुआछूत, पाखण्ड, अन्धविश्वास
और धर्मान्धता से
मुक्त समाज के,
वे उसके मार दिए जाने के बाद भी
ज़िन्दा हैं अभी
उसकी रचनाओं में।
 
मर नहीं गए हैं सब सपने
कुछ सपने ज़िन्दा हैं अभी भी !