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सपने में बर्फ / अग्निशेखर

Kavita Kosh से
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मेरे दोस्त ने सपने में सुने मुझे कविता -
'मास्को में हिमपात'

मैंने दिखा मेरी पहुँच से ऊंचे शेल्फ पर
टी.वी. में आने लगे
हिमपात के दौरान कश्मीर जैसे दृश्य
लेकिन उन्हें बताया जा रहा था मास्को
अपने से थे गाँव
बर्फ़ लदे मकान
बिजली की तारों पर बर्फ़ की रेखाएं
सड़क किनारे धंसी हुई कारें

इतने में चली आई माँ भी कहीं से मेरे पास
मेरे चेहरे पर गिरने लगे
मास्को की बर्फ़ के आवारा फाहे
कुछ अदृश्य छींटे
छुआ मेरी माँ ने आश्चर्य से
मेरे विस्मय को
दंग था वहीँ खड़ा
मेरे कवि दोस्त भी
गिर रही थी जैसे सदियों बाद बर्फ़
जैसे पहली बार भीग रहा था मैं
किसी के प्रेम में

मै आँख मूँद कर निकल पड़ा उस क्षण
बचपन की गलियों
खेत खलिहानों में निर्वासन के पार
बरस दर बरस

'मास्को में हिमपात' शीर्षक से लिखी
अपनी कविता में
नहीं रचा था मेरे दोस्त ने
बिम्ब यह चलायमान
और इससे पहले की ठंड से जमकर
मै हो जाता वहीँ पर ढेर
मुझे बाहों में खींचकर माँ
देती रही सांत्वना
और मैंने देखा उसके कंधो के ऊपर से
वह खड़ी थी हवा में घर से बाहर
धरती विहीन

और बर्फ़ गिर रही थी झूम झूमकर
हमारे हाल पर
समय के कमाल पर.