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सप्तैते चिरजीविन: / अंकावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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1. अश्वत्थामा -
सुनि रण मरण मृषा वचनहु सुत हित तनु त्यागल
द्रोण गुरुक सुत-शिष्य अमर से रहल अभागल
पाण्डु-कुलक अन्तक आतंकी विप्र कलंकी
उत्तराक गर्भक निपात करितहुँ निष्टंकी
ब्रह्म-अस्त्र साधल, मुदा बाधल नहि हरि-कृपा बल
अश्वत्थामा जीवितहु मुइले, विनु मणि फणि विकल।।

2. बलि -
जनमि दैत्य-कुल दान यजन मे सुरहुक काने
कतरल, चतरल यश-उदारता लता विताने
भगवानहु वामन बनि जनिका याचल द्वारे
त्रिविक्रमक पद क्रमहि नपाओल पीठ उदारे
बलि बलिदानी आइ धरि यशहु शरीरहु अमर बनि
प्रातः स्मरणक मालिका ग्रथित प्रथित शुभ नाम जनि

3. व्यास -
वेदक कयल विभाग साम ऋक् यजु अथर्वणे
वेदान्तक विस्तार ब्रह्म - सूत्रक संग्रथने
कयल पुरा-नव अन्वर्थक पुराण शुचि देशे
महाभागवत महाभारतक कथा अशेषे
व्यास कृष्ण द्वैपायने गीता गायक द्विभुज हरि
जगद्गुरुक पदपर अमर प्रस्थान-त्रय ज्ञान भरि

4. हनुमान -
रुद्रक नव अवतार अंजनी नयन अंजने
पवनपूत श्रीरामदूत खलदल निकन्दने
वन अशोक मैथिली - शोक अनलक चिनगी लय
डाहि देल कंचन लंका असुर क जिनगी लय
लंघित वारिधि, वधि असुर विनु फल नहि विसराम
भक्तिवंत हनुमंत पद, ग्रहथि अन्त अभिराम

5. विभीषण -
लकहु बंकहुमे बसइत जनिका न कलकक लेश
डोभा डाबर पाँक जनमि जनि कमल सुरभि-परिवेश
दशमुख रुख कठोर, कत घातक घात, लात कत खाय
सीतापतिक चरण शरणागत अमर सुयश जग छाय
भक्त-विभूषण युग अमर दूषण रहित सुनाम
जयतु विभीषण भक्तवर जनि चित अनुपल राम

6. कृपाचार्य -
द्वापर छल रण-युगे जतय आचार्य धनुर्धर
नाम कृपे मन कृपा-कृषण, कृति क्रूर निठुरतर
कुरुक पक्ष धय प्रलय मचाय बचा निज प्राणे
अश्वत्थामक माम चरित उद्दाम प्रमाणे
तदपि विधिक छल वंचना अयश सुन’क हित अमर बनि
कृपाचार्यपर करु कृपा यम, यम-नियमक प्रसर पुनि

7. परशुराम -
हेहर हैरय वंशक ध्वंसक, क्षत्र-निपातक
परशु हस्त उद्धत राजन्य विपिन उत्पाटक
धनुष वान लय कान्ह तानि यज्ञक उपवीते
राम नाम अभिराम परशु युत युग - युग गीते
जिति अर्जित भू-सम्पदा नहि राखल अपने छो
दय कश्यप केँ काश्यपी अमर परशुधर छथि मने