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सफर / जलज कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
रात और दिन की
आपाधापी
अंधीदौड़ अंतहीन सुरंग की
हिसाब –किताब के बाद
हथेली में टपके
चंद खोटे सिक्के
इस भाग –दौड़ में
हम कही छुट गए
कुछ टूट गए
कुछ फुट गए
खेत से पेट तक का सफर
और सफर की थकान के बाद
सराय रूपी घर में पड़े बिस्तर पर
रोज का लुढ़कना
फिर सुबह को जगना
और फिर
एक नये सफर की तैयारी
यह है अपनी लाचारी