भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सफ़र पर / गुरमीत बेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सफ़र पर

यह वक्त शब्दों के दीये जलाने का है
कहा एक कवि ने
और मैंने सचमुच एक दीया जलाकर
आँगन में रख दिया

वह लड़ता रहा अंधेरे से
लड़ता रहा आँधियों से
लड़ता रहा एक पूरी रुत से
और धीरे-धीरे
मेरे जिस्म में एकाकार हो गया

अब मेरे हर शब्द में है एक मशाल
और शब्द निकले हैं सफ़र पर।