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सब कुछ उजड़े-बिखरे / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
सब कुछ उखड़े बिखरे
पतझड़ के मौसम में
तुम्हारी याद
बसंत का गुलाल
राख का ढेर बनती
इस जिन्दगी में
तुम्हारा चेहरा
सिगनल
उम्मीदों से भरी
एक नयी शुरूआत का