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सब कुछ पाकर खोने वाले / विनय मिश्र
Kavita Kosh से
सब कुछ पाकर खोने वाले ।
हम हैं हँसकर रोने वाले ।
जिनको चारागर समझा था,
निकले जादू-टोने वाले ।
हारी-हारी साँझ मिलेगी,
सिर पे सूरज ढोने वाले ।
रखते बातों में उलझाकर,
अक्सर सपने बोने वाले ।
कभी सुर्ख़ियों में छाएँगे
अख़बारों में कोने वाले ।
दूरी चाहे और बढ़ी हो,
पास रहे हैं होने वाले ।
ये पतझर भी जाएगा ही,
रुत आँसू से धोने वाले ।
आँखें मूँदे जाग रहे हैं,
ऐसे हैं कुछ सोने वाले ।