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सब बेरथ / धनन्जय मिश्र

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मुसाफिर छेकां
चलत्हैं रहना छै
कहाँ जाना छै
की छेकै मंजिल
कोय आरो ठिकानोॅ नै
कहाँ रूकना छै
यहू तेॅ पता नै
तहियो
जाना तेॅ छेवे करै
जइये रहलोॅ छी
कहाँ जातरा खतम होतै
धरती के पार?
की सरंगोॅ के ऊपर?
जहाँ सब होतॅे-होतेॅ
एक दूसरा लेॅ अजनबी
न केकरोॅ लेॅ
केकर्हॉे प्यार
न शोक
न जलन
तहियो कोय दुख नै
याहीं की सुख छै
यै दुनियाँ में दुक्खे में जन्मोॅ
दुक्ख में मरोॅ
ई जातरा भी तेॅ दुक्खे के
काँही मोक्ष नै
कोय निर्वाण नै।