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सब मैं ही / साँवरी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
सुनो प्रियतम
मेरी आँखों का बरसना देख कर
सावन ने बरसना छोड़ दिया है
यही कारण है कि
नहीं बरसते हैं अब
सावन के ये मेघ।
सूखा ही रहता है यह पूरा सावन
और यह जो कभी-कभी
चाँद छिप जाता है मेघ से
जानते हो प्रियतम
यह क्या है ?
यह मेरी आँखों के बहते काजल हैं
और मेरे ही बिखरे केश
अगर मेघ होते
तो बरसते नहीं ?