भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबद / निरुपमा सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँखों और आँसुओं
के बीच
बिछी होती है इक परत
जन्म लेती है जिनमें
स्नेह शताब्दियाँ

पुतलियाँ डुलाती है
चँवर
जैसे रखा हो
गुरूद्वारे में गुरुग्रंथ

सांचे दरबार में
स्वर बन
"शबद”सी
डोलती
प्रीत हमारी
जैसे!
निष्पाप कन्या
भूल बैठी हो
अपना धरम!