सबद भाग (4) / कन्हैया लाल सेठिया
31.
काळा धोळा बळद दो
करसो लूंठो काळ
खेत गगण, झूंपो धरा
हाळण पून लबाळ
32.
दिन रै धोळै हंस रै
रात कागली लार,
खोस्योड़ी पांखां नखत
पट्यो पड़यो गिगनार
33.
मोटो समद बिलोवणो
कनक झेरणो भाण
पून बिलोवै बादळा
लागै माखण मान
34.
घोर अंधारो कद कटै
बायां स्यूं तरवार ?
चावै हुवै उजास तो
दिवळो चास अबार
35.
उतरै सूरज किरण बण
बूंद बणै घन माल,
जे अै संजम त्याग दै
परळै में के ताळ ?
36.
बूंद आप में समद है
समद आप में बूंद,
परम मरम परतख हुसी
खुल ज्यासी जद चूंध
37.
आंसू झर निरथक गया
मत सोची आ बात,
अै गीता रा बीज है
उगसी रात बिरात
38.
रोज काळ रै समद में
गोतो मारै रात,
ज्यावै पीदै स्यूं उठा
मोती सो परभात
39.
पाक्यो सूरज फळ झटक
लीन्यो आंथण तोड़ ,
बिखरया तारा बीज जद
खावण लागी फोड़
40.
जोगी, भोगी, नखतरी
जोदा, पदमण नार,
राख सक्यो इण काल नै
कोई कद बिळमा’र