भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबदां रो मिठास / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आखरां री कारीगरी
सबदां रो मिठास
भावां रो खटास
फगत
तिरस ई तिरस
मिठास सूं कोई नीं हुवै आपणो
सबदां मांय घोळो मिठास
यादां री चासणी
तद ई बा बात
लागसी आपणी
किणी सूं तो करो
सुपनां री बात
तद ई यादां हुसी थांरी
सुपनां भी थांरा
अर आखर भी थांरा।