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सबसे कह दो / प्रज्ञा रावत

सबसे कह दो कि
वो आज कहीं नहीं जाएगी
गुनगुनी धूप में बैठकर
धीरे-धीरे बालों में तेल लगाएगी
आज वो बरसों से टलते रहे
प्रेम-पत्र एक-एक कर लिखेगी
और ज़ोर से झूलते
हुए आसमान छू आएगी
आज वो फूलों को अपने
हाथों से छूएगी
छत पर ठण्डे बिस्तर में लेटकर
तारों को चलते हुए देखेगी
और धीमे-धीमे आकाश में चित्र बनाएगी
आज वो आँख बन्द कर
अपने कण्ठ से
सारी धरती को तर कर देगी।