सभ्भे घरो में ठनाठनी / छोटे लाल मंडल
देखै सुनै छी सौसे दुनियाँ
सभ्भे घरों में ठानाठनी,
केही पै बेटवा कही पुतौहा,
कखनों होय छै घनाघनी।
बैटा कहै छै की तांेय कैइलौ
की तोय पूरजा परीक्षां भेजलो,
की तोंय लाठी डंडा खैयलो,
की तोंय घेरा तोड़ी के घुसलो।
नै कुछ वेचलो जमीन जगहा,
नै कुछ गिरमी जेवर सिक्का,
लाज तनि नै आवौं पक्का,
कहै छियौ ते लागौं धक्का।
हायरे-मैया रखलकौ अचरा तर
आपनें सुतलौ कचरा तर
मृग नैनी के वाण लगलौं छै
लपट झारै छै हमरा पर।
की नैं करलियौ भूली गेलै,
छड़पनियां मारी के स्कूल गेलियौ
टियूसन पढ़ाय के पेट भरलियौ,
नौन तल हलदी सोहो जुटैलियौ,
पेट काटी के तोरा खिलैलियौ,
पुस्तक कौपी सोहो किनलियौ,
तोंय कहैं छै कुच्छु नैं,
हम्मरा लेली कपुत वानो नैं।
हे दुख भंजन तोही विचारौ,
सचमुच कलियुग अैइलैं की,
तुलसी कवीरें सहियै कहैतिन
की चार अखियां में डुबलै की।