भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सभ्यता-2 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’
Kavita Kosh से
13.
नाय रे दूस
नंगा देहोॅ पर तेॅ
के नाय खुश।
14.
छेकै पैगाम
ओढ़नी सें आबेॅ की
हमरा काम।
15.
देखोॅ नी चाल
ओढ़नी भै गेलै नी
आबेॅ रूमाल।
16.
के ढोतै भारी
देहोॅ पर ई साड़ी
फेकोॅ उतारी।
17.
नंगा बदन
करतै के आबेॅ रे
चीर हरण!
18.
छेकै फैशन
चलोॅ नंगा बदन
नै टेनशन!
19.
ऊ जे दीवान
पकड़ी-धकड़ी लै
भागै जनाना।
20.
ऊपरें खोल
भितरें देखोॅ कत्ते
बाजै छै ढोल।
21.
केकरोॅ दोष
के नाय लुटिये केॅ
बनावै कोष?
22.
रहै छै लोभ
जबतक नाय रे
कामोॅ के शोध।
23.
ई इबादत
मनसूबा के पीछू
ई कबायत।
24.
ऊ धोखेबाज
नाय जानौं कखनी
लुटतै लाज!