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समता-स्वप्न / महेन्द्र भटनागर

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विश्व का इतिहास

साक्षी है _
अभावों की
धधकती आग में
जीवन
हवन जिनने किया,
अन्याय से लड़ते
व्यवस्था को बदलते
पीढ़ियों
यौवन
दहन जिनने किया,
वे ही
छले जाते रहे
प्रत्येक युग में,
क्रूर शोषण-चक्र में
अविरत
दले जाते रहे
प्रत्येक युग में!
विषमता
और ...
बढ़ती गयी,
बढ़ता गया
विस्तार अन्तर का!
हुआ धनवान
और साधनभूत,
निर्धन -
और निर्धन,
अर्थ गौरव हीन,
हतप्रभ दीन!
लेकिन;
विश्व का इतिहास
साक्षी है _
परस्पर
साम्यवाही भावना इंसान की
निष्क्रिय नहीं होगी,
न मानेगी पराभव!
लक्ष्य तक पहुँचे बिना
होगी नहीं विचलित,
न भटकेगा / हटेगा
एक क्षण
अवरुद्व हो लाचार
समता-राह से मानव!