भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय-रथ के ध्वजा वाहक / सूर्यकुमार पांडेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीड़ितों की पीर के हम पक्षधर
अग्निपथ के अंध अनुगामी रहे।
राजसत्ता की रखी कब कामना
हम सदा प्रतिपक्ष के हामी रहे।

जो किया, जब भी किया, मन से किया
चाटुकारी पंक्तियां गाईं नहीं।
वंचितों के पाहरू बनकर रहे
दोमुंहों की नीतियां भाईं नहीं।

चीख गई, स्वर नहीं पंचम रखा
बैठ सुविधा-डाल पर कूके नहीं।
आरतों का कष्ट हरने के लिए
स्पष्ट कहने से कभी चूके नहीं।

आंख में सपना सवेरों का भरा
पांव में भर दर्द छाला हम चले।
चांदनी को चुटकियों भर धूप दी
सूर्य का लेकर उजाला हम चले।

एक दीपक की अकेली राह के
ये अंधेरे शत्रु सब नाहक बने।
वर्तिका बाली उजालों की तरह
हम समय-रथ के ध्वजा वाहक बने।