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समय और मैं / असंगघोष
Kavita Kosh से
मैंने उबड़-खाबड़
जीवनपथ पर
समय के साथ-साथ
दौड़ना शुरू किया
समय को पीछे छोड़
मैं काफी आगे निकल गया
बीच रास्ते में
ठोकर लगी, मैं गिर पड़ा
सम्भला, उठा, और
फिर दौड़ने लगा
तब तक एक साया
तेज कदमों से दौड़ते हुए
मुझे पीछे कर
आगे निकल गया
मैंने अपनी चाल बढ़ाई
वह साया धुंधला-सा दिखा
मैंने पहचाना
वह समय था
जिसे मैं अभी तक
पीछे नहीं कर पाया
दौड़ना जब भी जारी है।