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समय केॅ आरी पर / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
समय केरोॅ आरी पर
ई हालतोॅ में
मिठास घोलै लेॅ दुनिया में
के बनलोॅ रहै लेॅ चाहै छै आबेॅ
केतारी रोॅ किसान ?
विश्टी पिन्ही केॅ खुल्ला पाँव
कन्हा पर कुदाल लै केॅ
जेठोॅ केॅ दुपहरिया में
के जाय लेॅ चाहै छै खेतोॅ तरफें
सिवाय छोड़ी केॅ कुछ मजबूर किसानोॅ के
के खोजै लेॅ चाहै छै
केतारी नांकि मीठोॅ फसलोॅ केरोॅ जड़
खोजै लेॅ नै गेलोॅ छै
केतारी नांकि
फेरू दोसरोॅ कोनोॅ फसल
जेकरा में फल ही फल होय छै
गोड़ोॅ सें माथा तांय
आबेॅ तेॅ दिशा ही बदली गेलोॅ छै
खोजै के
खोजै छै, खोजी आबै
संकर केतारी केरोॅ नया-नया किसिम
जे होलोॅ जाय रहलोॅ छै
लगातार खारोॅ-नोनियैलोॅ
छिनलोॅ जाय रहलोॅ छै
केतारी केरोॅ मिठास
एक बड़ोॅ षड़यंत्र सें।