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समर्पण / बृजेन्द्र कुमार नेगी

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मैला, फट्यां खुरदरा हाथ
मट्यणा, म्वल्यणा, खरस्यणा गात
खुचिली मा सिर्फ आंसु अर पीड़ा
खैरी ही जीवन कु एक मात्र रस्ता
जरा ईंकी निष्टा त देखा।
 
गुढ्यार मा बंध्या लैंदा-बैला गोर
द्वि पूली घास कु अट्क्द धार-धार
सासु की गाली अर पतरोल कु डौरल
जम्मा नि दयख्दी भ्याल अर पाखा
जरा ईंकी हिम्मत त देखा।
 
पुंगडी-पटल्यूँ की धाण-धंदा
नौना-बालों की अलग घिम्साण
द्वि बक्ता कि चुल्हा कि हलंकार
निकज्जू आदिम कि हालत खस्ता
फिर भी इंकू समर्पण त देखा।