भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समाजवाद / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
Kavita Kosh से
समाजवाद ने
क्या खड़ा किया?
गर व्यक्तिवाद
गिराया ही नहीं?
मछली पक भी जाए
औ’ जिन्दा भी रहे?