भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समाधि लेख / भारत भूषण अग्रवाल
Kavita Kosh से
रस तो अनंत था, अंजुरी भर ही पिया,
जी में वसंत था, एक फूल ही दिया।
मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है,
कैसे बडे युग में कैसा छोटा जीवन जिया।