भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समीक्षक जी / नवनीत शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 

 


कविता पढ़ने के बाद
अटक गए समीक्षक जी
मन से निकला
वाह
पर मुँह तक नहीं आया
दूसरी कविता पढ़ी
मन से निकली गाली
लबों पर अटक गई
टिप्‍पणी से पहले पूछा
कवि का नाम
फिर हुई टिप्‍पणी।
एक मौत हुई उसके बाद
कविता की
या समीक्षक की
पता नहीं।