भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समुद्र-6 / पंकज परिमल
Kavita Kosh से
समुद्र जितनी बार आता है
तट से मिलने
कभी खाली हाथ नहीं आता
लहरें मुस्कुराती हैं हर बार
सीपियों और शंखों का
और असंख्य छोटी-मोटी कौड़ियों का भी
एक-पैकेज छोड़ ही जाती हैं