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समुद्र को याद करते हुए / पुरुषोत्तम अग्रवाल
Kavita Kosh से
सागर की साँवरी देह पर चाँदनी
जैसे तुम्हारे साँवरे गात पर आभा
करुणा की, प्रेम की, अपनी सारी बेचैनी को स्थिर करती साधना की
कितना अलग दिखता है समुद्र तुम्हें याद करते हुए
कैसी समझ आती हो तुम
समुद्र को याद करते हुए