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सम्भाळ’र राख सूं / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सिकती रोटी उथळतां
होळै-सी क चाख लेवै तवो
म्हारी आंगळी
आंगळी माथै फालो
फालै में पाणी
पाणी में ऊंचो आवै-
एक कंवळ
अरे !
औ तो थारो उणियारो है
अबै म्हैं
केई दिनां तांईं
संभाळ’र राख सूं
औ फालो
औ कंवळ
औ उणियारो
इणी उणियारै ताण
म्हारै चोफेर
ओळूं-उजास !
अटूट विश्वास !!