भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सम्भाळ’र राख सूं / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिकती रोटी उथळतां
होळै-सी क चाख लेवै तवो
म्हारी आंगळी

आंगळी माथै फालो
फालै में पाणी
पाणी में ऊंचो आवै-
एक कंवळ

अरे !
औ तो थारो उणियारो है

अबै म्हैं
केई दिनां तांईं
संभाळ’र राख सूं
औ फालो
औ कंवळ
औ उणियारो
इणी उणियारै ताण
म्हारै चोफेर
ओळूं-उजास !
अटूट विश्वास !!