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सम्मोहन / अरविन्द चतुर्वेद

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तुम्हारी हँसी देखी
और ख़ुद हँसना भूल गया
एक-एक बूँद आँसू में
मैं जैसे डूब गया
तुम्हारी एक हिचकी
फैल गई समूची रात पर
और चाँद उतर आया
धीरे से
मेरे हाथ पर।