भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरकारी अमला / रामकिशोर दाहिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर किसान की
खेती उजरी
पाला मार गया
शासन का
सरकारी अमला
पल्ला झार गया।

देने लगे
दलीलें कहते-
बीमा फसल
किसानी
शर्ते नियम
कम्पनी समझे
कौन भरे नुकसानी
हाल झूल से
गाल गूल तक
टूट करार गया।

लागत लौटी
नहीं खेत से
उस पर बनी-मजूरी
रकम शेष है
खाद-बीज की
जोत-सिंचाई पूरी
सिर पर लादे
कर्ज़ रोटियाँ
बढ़ता भार गया।

फुर्सत नहीं
रोग दम तोड़े
आफत और नई
खड़ी मूड़ पर
चिन्ता बिटिया
समधी खोज गई
बिना तेल की
बाती फागुन
फिर उकसार गया।

-रामकिशोर दाहिया