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सरजण / सांवर दइया
Kavita Kosh से
आंधी
बिरखा
अर लू रा थपेड़ा झेल’र
ऊभो रूंख आ समझावै
-बीज अर पाणी मिलतां ई
धूड़
धरती बण जावै ।