भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरद रितु आ गे / द्वारिका प्रसाद तिवारी 'विप्र'
Kavita Kosh से
चउमास के पानी परागे।
जाना-माना अब अकास हर,
चाँउर सहीं छरागे।
जगजग ले अब चंदा उथे,
बादर भइगे फरियर।
पिरथी, माता चारोंखूंट ले,
दिखते हरियर-हरियर।
रिगबिग ले अब अनपुरना हर,
खेतन-खेत में छागे।
नंदिया अउ तरिया के पानी,
कमती होये लागिस।
रद्दा के चउमास के चिखला,
झंझटहा हर भागिस।
बने पेट भर पानी पी के,
पिरथी आज अघा गे।
लछमी ला लहुटारे खातिर,
जल देवता अगुवाइस।
तब जगजग ले पुरइन पाना -
के दसना दसवाइस।
रिगबिग ले फेर कमल फूल हर,
तरिया भर छतरागे।
चारोंखुंट म चुहुल-पुहुल,
अब करथें चिरइ-चुरगन।
भौंरा घलो परे हे बइहा,
करथे गुनगुन-गुनगुन।
अमरित बरसा होही संगी,
सुघर घड़ी अब आगे।