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सरपंच होकर / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
व्याकरण से आचरण तक
हर तरफ़ सम्बन्ध कारक।
आँज कर अंजन चपल
छलनामयी संवेदना का
लीक पर, तरकीब से
पुचकार कर, इन्सान हाँका
काम पर धर नाम अपना
बन गए हैं सिद्ध-साधक।
व्यक्ति को सीढ़ी बनाकर
स्वार्थ के चिकने चरण ने
एक ऊँची छत बना ली
यश पिपासी, अपहरण ने
पंच में सरपंच होकर
टोहते ये ग्राह-ग्राहक।