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सरस जीवन में बेरहमी उसे नीरस बनाती है / सुजीत कुमार 'पप्पू'

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सरस जीवन में बेरहमी उसे नीरस बनाती है,
यही वह बात जो सबको समझ में ही न आती है।

जिसे मालूम है जीना बहुत ख़ुशहाल जीता है,
वो जीवन मोल क्या जाने समझ जिसको गिराती है।

नहीं बाज़ार में मिलती न बनिये के यहाँ बिकती,
समझ तो चीज़ है ऐसी जो सीखी-समझी जाती है।

बहुत से हो गए बर्बाद अपनी ही चालबाज़ी में,
अकड़बाज़ी वह कैसी है नहीं जो टूट पाती है।

करो ऐसा जतन कोई बना लो शेष जीवन को,
मिलेगा फिर न दोबारा यही होनी बताती है।