भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सर्कस का जोकर / बालस्वरूप राही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हंस कर कभी कभी रो कर,
खूब हँसता है जोकर।

रंग-बिरंगा सूट पहन,
ढीले-ढाले बूट पहन,
उछल-उछल खाता ठोकर।

ऐसा ढोंग रचता है।
जैसे सब कुछ आता है,
जब कुछ करने जाता है
गिरता उलट-पलट हो कर।