सर्ग आठ / राधा / हीरा प्रसाद 'हरेन्द्र'
मोहन जब से छोड़ी गेलै,
राधा, गोकुल धाम।
तब सें राधा चैन नैं पाबै,
कखनूँ सुबहो-शाम॥1॥
वृन्दावन, वंशीवट सूना,
सूना यमुना धार।
कदमी डारें टँगलोॅ झूला,
सब लागै बेकार॥2॥
सदा सुहानोॅ लागै मधुवन,
गुंजै मुरली तान।
अब राधा-मोहन बिन मधुवन,
लागै छै सुनसान॥3॥
रीति रंग सब बदली गेलै,
बदलै सदा-बहार।
झलकै सगर विषाद जहाँ पर,
हरदम हर्ष अपार॥4॥
राधा हौ गोकुल नगरी मेॅ,
बैठी ध्यान लगाय।
कृष्ण नाम ही जपै निरंतर,
कृष्ण नाम ही गाय॥5॥
चललै नारद बनी खबरिया,
गोकुल राधा पास।
धरी डगरिया छोड़ नगरिया,
मन मेॅ हर्ष-हुलास॥6॥
डगर-डगर पर सगर अन्हरिया,
सूरज जाय नुकाय।
हवा चलै तब हिलै टहनिया,
मुखड़ा दै चमकाय॥7॥
पपिहा पिउ-पिउ गाबै पल-पल,
कोयल मारै तान।
भौंरा के पंखोॅ सें भन-भन,
निकलै सुन्दर गान॥8॥
लत्तर भरलोॅ गाछ-गछेली,
काँटोॅ पर छै फूल।
फूल-फूल पर भौंरा डोलै,
खोलै भेद न भूल॥9॥
ढकमोरै आमी के मंजर,
गाछे लागै मोर।
वै मेॅ छिपलोॅ कखनूँ झलकै,
कोयल करिया भौर॥10॥
आहर-पोखर पानी भरलोॅ,
सीढ़ी बनलोॅ घाट।
कहियो राधा घाटें बैठी,
जोहै छेली वाट॥11॥
रात कुमुदिनी उजरोॅ-उजरोॅ,
दिनंे कमलिनी लाल।
रंग-बिरंगो पंछी तैरै,
कन्हौं बाल मराल॥12॥
देखै सगरे छटा मनोहर,
बैठी गाछी छाँव।
पहुँची गेलै नारद बाबा,
पुछनें गोकुल गाँव॥13॥
गाँव-नगरिया, महल-अटारी,
चौबटिया बेजोड़।
घर-आँगन सब सुन्दर लागै,
सुन्दर सब्भे मोड़॥14॥
नैन निरखनें सुन्दर शोभा,
राधा के ढिग जाय।
तुलना करतें गोकुल-मथुरा,
गेलै मन चकराय॥15॥
हरे कृष्ण बस मुखारविन्दें,
निकलै बारम्बार।
पहुँची नारद देखै सचमुच,
प्रेम जगत् मेॅ सार॥16॥
ध्यान लगैनें देखी नारद,
बैठै तब चुपचाप।
बैठी सुनतें रहलै पल-पल,
कृष्ण नाम के जाप॥17॥
आँख खुलै जेन्है राधा के,
मुनि के दर्शन पाय।
ऋषिवर कान्हा के दुक्खोॅ सें,
भरलोॅ हाल सुनाय॥18॥
चरणोदक के बात सुनै जब,
तब गेलै झल्लाय।
कहाँ गेलै उ मथुरावासी,
काम जरा नैं आय॥19॥
जेकरा साथें रही एनाँ,
देलकै सुधि बिसार।
लौटी आबै के भेलै सब,
करलोॅ प्रण बेकार॥20॥
आग विरह के हमरा सौंसे,
देहें लगलोॅ छौंन।
धोखा देने छलिया जहिया,
सें उ भागलोॅ छौन॥21॥
तब नारद सब्भै रानी के
देलक बात बताय।
सुनथैं राधा के तन-मन सें,
गेलै भूत पराय॥22॥
अपनोॅ सब दुख भूली राधा,
बोलै नारद जाय।
चरणामृत दै छी हम अखनी,
दोहो जल्द पिलाय॥23॥
चुट्टी काटै वाला नारद,
बाबा छै मशहूर।
सब्भे लोकें चुगली लारै,
ओकरोॅ इ दस्तूर॥24॥
”ब्रह्मा के बेटा छैकाँ हम,
नारद हमरोॅ नाम।
इधर-उधर के चुगली लारौं,
बड़का हमरोॅ काम“॥25॥
हायटा उक्ति कीर्त्तन-भजनें,
गाबै बड़ी महंथ।
हाव सुनलका बात मने मन,
ऐलै याद तुरंत॥26॥
नारद बोलै नरक जाय के,
तोरा नैं छों डोॅर।
राधा बोलै हम्मेॅ मुनिवर,
वही बनैभौं घोॅर॥27॥
एक जनम नैं लाख जनम तक,
नरके हमरा भाय।
हमरोॅ प्रीतम कान्हा के नैं,
तनिको रोम दुखाय॥28॥
मोल प्राण सें अगर मिलै जों,
सब दुख लेबै मोल।
सुख सें रहै जहाँ छै कान्हा,
की बोलै छोॅ बोल॥29॥
कर जोड़ै मुनिवर सें राधा
जल्दी जा सिधियाय।
होतै बड्डी कष्टें कान्हा,
दोहो कष्ट मिटाय॥30॥
लै चरणामृत ऐलै नारद,
कान्हा शीश चढ़ाय।
रानी, पटरानी के बीचें,
राधा मान बढ़ाय॥31॥
स्वर्ग-नरक के बड़का जालें,
जे गेलै लपटाय।
चुगलै ओकर खेत चिरैया,
होतै की पछताय॥32॥
जानी-सुनी कहानी सब्भे,
रानी गेल लजाय।
महिमा लगै विचितरे उनकोॅ,
पार भला के पाय॥33॥
बसलोॅ छै मोहन राधा मन,
राधा सुख के धाम।
राधा-मोहन सब जड़-चेतन,
बसलोॅ सब्भे ठाम॥34॥