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सर्द मौसम / कविता कानन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
ठंढी हवाएँ
ठिठुरन बढ़ातीं
स्वेटर , कोट
नहीं सह पाते
ठंढ की चोट ।
लगते प्यारे
कम्बल , रजाई
जलता अलाव
करते बचाव
गरीब का
थोड़े से पुआल
होड़ लेते
गद्दे और मसनद से
आग का ताप
एकमात्र सहारा ।
उत्तर से आती
शीत लहर
मचा रही क़हर ।