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सर्वे भद्राणि पश्यन्तु / शुभा द्विवेदी

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सभ्यता का क्रमबद्ध व वैज्ञानिक अवधारणा के आधार पर विकास
जो हमेशा बंधा होता है समय सीमा में
दी जाती रही हैं आहुतियाँ जिसमें सनातन ही स्रोतों की
अनंत काल से हो रहा है
सभ्यताओं का विकास और दोहित हो रही
है प्रकृति भी साथ में
' क्या आज के मानव को समझायी जा सकती है अवधारणा
एकीकृत विकास की
क्या कोई होगा जो समझ पायेगा
यदि रमना हो प्रकति के साथ
तो बिठाना होगा सामंजस्य
विकास की सतत अवधारणा के साथ
बढ़ती रहे, पोषित हो आने वाली पीढ़ियाँ भी
बचा रहे प्रकृति का समग्र उनके लिए भी
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः का मूल है विराजित जिसमें
सर्वे सन्तु निरामयाः, सभी को अधिकार है निरोगी जीवन का
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, सतत उतपादन करता रहे पारितंत्र
सभी जन सुखी हो जिसमें
सार्थकता तब ही होगी सब और
सतत शांति की
संतुलन बना रहे उत्पादन और दोहन के मध्य
सरक्षण हो जैविक विविधता का
सांस्कृतिक विविधता का
अवधारणा का उद्येश्य हे "मानव मात्र का गुणात्मक विकास"
समझ पाएँ सभी त्रिगुणमयी प्रकृति को।