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सलाम / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

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ये जश्ने-योमे आज़ादी ये आबोताबे शाहाना
मुबारक ऐ वतन वालो तुम्हें इस रोज़ का आना

ये वो दिन है जो पैग़ाम मुसर्रत ले के आया है
शहीदों ने लहू अपना बहा कर इसको पाया है

सलाम ऐ तांतिया ऐ अज़मते हिन्दोस्तां तुमको
दुआएं दे रहा है आज हर पीरो-जवां तुमको

सलाम उन गाज़ियों को उन शहीदों उन जवानों को
जिन्होंने खून से सींचा वतन के गुलस्तानों को

सलाम उनको जो ग़ैरों की गुलामी सह न सकते थे
जो जंज़ीरों में जकड़े रह के ज़िंदा रह न सकते थे

सलाम ऐ झांसी की रानी तुम्हारे जैसी नारी को
तुम्हारे हौसले को अज़्म को और जां-निसारी को

सलाम उन शम्मे आज़ादी के परवानों की जुर्रत को
जो हरगिज़ सह न सकते थे गुलामी की ज़लालत को

सलाम ऐ नाना साहिब आपके उन शहसवारों पर
वतन के नाम पर जो नाच उठे खंज़र की धारों पर

ये आज़ादी का दिन गो राहतें लेकर के आया है
वतन पर मिटने वालों की ये यादें साथ लाया है।