भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ससुरे परलोक क चुनरी नैहरवा संसार धूमिल भई / अवधी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ससुरेपरलोक क चुनरी नैहरवा संसार धूमिल भई
राजा जी परमात्मा जैहें पहिचानि ,करब हम कौन बहाना
आवा गवन...

मोरे पिछवारे रंगरेजवा बेटौना गुरु
बीरन लागौ हमार ,करब हम कौन बहाना
आवा गवन...

एक बोर मोरी बोरौ चुनरिया ज्ञान,
भक्ति और कर्म के आलोक से मेरी आत्मा की शुद्धि कर दो
राजा न पावें पहिचानि ,करब हम कौन बहाना
आवा गवन...

संकरी गलिय होई के डोला जो निकरा
छूटा जो आपन देस ,करब हम कौन बहाना
आवा गवन...

आवा गवन नगिच्याय करब अब कौन बहाना