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सहजन-2 / रंजना जायसवाल

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सहजन
क्यों तुमने अचानक
वस्त्रों का त्याग कर दिया
और नागा साधु हो गए
कुछ दिन पहले तक तो
सब कुछ सहज था
तुम्हारे जन्म से पहले
हरा-भरा-पूरा हो गया था
रुण्ड-मुण्ड सूखा पेड़
माँ बनने जा रही
स्त्री के तन और मन की तरह
मौसी प्रकृति ने बुनी थी तुम्हारे लिए सफेद
फूलों वाली कुलही और जालीदार स्वेटर
पड़ोसिन चिड़ियों ने तुम्हारे जन्म पर
सोहर गाया था
तेलिन चिड़ियों ने ठाकुर-ठाकुर का जाप किया था
नाइन हवा ने मला था उबटन और तेल
सूरज की किरणों ने नहलाया-धुलाया था
चाँद में चरखा काटती बूढ़ी दादी
सुनाती रही रात-रात भर लोरी
सबके प्यार-दुलार से पले तुम
कितने सहज और अलग निकले
लम्बे...हरे ....छरहरे
फिर अचानक क्यों तुमने
वस्त्रों का परित्याग कर दिया
और नागा साधु हो गए