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सहिहो न एती ढिठाई / कमलानंद सिंह 'साहित्य सरोज'
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सहिहो न एती ढिठाई ( लाल तेरी ) ॥
कहि कहि हारि गई सब गोपी, तुम न तजी बरिआई ।
जित तित रारि करत सबही सों, बरबस बात बढ़ाई ॥
नीति रीति समझत नहिं एको, करत काज मन भाई ।
चलहु आज जसुदा ढिग तेरी, कहिहौं सबै बुराई ।
अबही अबिर लगाइ भली विधि, जिय की साध मिटाई ।
अ¡चरा गहि कटि को झिकझोरी, अ¡गिया हू मसकाई ॥
हँसि हँसि बात करहु जनि मोसों, जैहे बिगड़ि कन्हाई ।
जब ‘सरोज’ सूने धरि पैहों, चलिहैं नहिं चतुराई ॥