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साँझ के हथियार / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
ख़ुद सूनी साँझ एक नुकीला हथियार मुझे सौंप
सुस्ताने लगती है
हर शाम मैं बरामदे में बैठ
एक नए हथियार की धार तेज़ करती दिखती हूँ
आज शाम की इस बारिश ने
कई छोटी-बड़ी बर्छियाँ मुझे थमा दी हैं
साँझ-दर-साँझ
ढेर सारे हथियारों का ज़खीरा
मेरे क़दमों में बिछ गया है
सप्ताहान्त मैं इन सभी हथियारों को इकट्ठा कर
पीछे के आँगन में रख
सोने चल देती हूँ
यह अनुमान लगाते हुए कि कल की साँझ
मुझ कौन-सा नया हथियार सौंपेगी