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साँप / अनिल शंकर झा
Kavita Kosh से
साँपे-साँप, साँपे-साँप,
जन्हें देखोॅ, तन्हे साँप,
आगू साँप, पीछू साँप,
गेहुवन साँप, संखड़ा साँप,
सब जीवोॅ पर भरी साँप।
सब पर सँपा हस्सै छै,
जेकरा-तेकरा डस्सै छै,
ओझा-गुनी सबटा फेल,
इच्छा वेशधारी साँप।
मानुख सबटा डरलोॅ छै,
कोन ओहारी भरलोॅ छै,
लाबा आरो दूधो लै छै,
तै पर पिन्डी माँगै साँप।
जगला पर भी साँपे-साँप,
सुतला पर भी साँपे-साँप,
कोट-कचहरी हिनके डेरा,
संसद में भी साँपे-साँप।
जाग किसुनमा अभियों जाग,
जगभैं तों तेॅ जगतौ भाग,
पुजभैं तेॅ यैं डसबे करतौ,
मारल्है पर ई मरतौ साँप।
साँपे-साँप, साँपे-साँप,
जन्हें देखोॅ, तन्हे साँप।