भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँप / अनिल शंकर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँपे-साँप, साँपे-साँप,
जन्हें देखोॅ, तन्हे साँप,
आगू साँप, पीछू साँप,
गेहुवन साँप, संखड़ा साँप,
सब जीवोॅ पर भरी साँप।

सब पर सँपा हस्सै छै,
जेकरा-तेकरा डस्सै छै,
ओझा-गुनी सबटा फेल,
इच्छा वेशधारी साँप।

मानुख सबटा डरलोॅ छै,
कोन ओहारी भरलोॅ छै,
लाबा आरो दूधो लै छै,
तै पर पिन्डी माँगै साँप।

जगला पर भी साँपे-साँप,
सुतला पर भी साँपे-साँप,
कोट-कचहरी हिनके डेरा,
संसद में भी साँपे-साँप।

जाग किसुनमा अभियों जाग,
जगभैं तों तेॅ जगतौ भाग,
पुजभैं तेॅ यैं डसबे करतौ,
मारल्है पर ई मरतौ साँप।

साँपे-साँप, साँपे-साँप,
जन्हें देखोॅ, तन्हे साँप।