भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँप और शैतान / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम बाण मारते हैं
न साँप मरता है-
न शैतान।
हम हो गए
परेशान,
हमें मारे डालते हैं
साँप
और शैतान।

रचनाकाल: १३-०८-१९७६