भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँस / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सांस
निकळयो’र बापड़ी
माटी खिंड ज्यासी-
आ थारी कळपना ही थोथी है !
मौत तो
जिनगानी रै
बिखरयोड़ै पानाँ री
जिल्द बाँध्योड़ी पोथी है !