भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी / मीराबाई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग धानी


सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी॥

थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी॥

मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥

शब्दार्थ :- निभाज्यो =निभा लेना। थे छौ =तुम हो। औगण =अवगुण, दोष, भूलें। जाज्यो = जानना, मन में लाना। पतीजै =विश्वासकरना। मुखडारा =मुख का। रमता आज्यो =विहार करते हुए आना।