भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साइकिल पर गिटार / नीलेश रघुवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चा बड़ा हो रहा है धीरे-धीरे
समुद्र और पहाड़ों को करता है एकमेक
घर को बना देना चाहता है आकाश
समेट लेना चाहता है धरती को गोद में
भीगना चाहता है पहली बारिश में
लगाता है
गमले में अमरूद का पेड़
सुनता है कहानियाँ
ढूँढता है पात्र आसपास।

जाता है शाम बग़ल की छत पर
लौटता है
साइकिल पर गिटार लिए
छेड़ता है
कभी कोई प्यारी-सी धुन
निकालता है कभी गोलियों की आवाज़।

बच्चा
अब सचमुच बड़ा हो गया है
गिटार और पिस्तौल में
कोई फ़र्क़ ही नहीं समझता।